छत्तीसगढ़ मनवा कुर्मी क्षत्रिय समाज के गौरव गीत / Kurmi samaj Kavita
जय हो, जय हो, जय हो।
क्षत्रिय कुल के भाग्य विधाता, तेरी सदा विजय हो।
तेरे गौरव की धारा में, मनवा कुर्मी लय हो।
तेरे गौरव की धारा में, मनवा कुर्मी लय हो।
जय हो, जय हो, जय हो।।
तेरे जीवन की परिभाषा, औरों को सुख देना।
तू न कभी सिखा बदले में, कभी किसी से लेना।
शक्ति तुम्हारी दिन जनों की, रक्षा में ही व्यय हो।।
चाहे राज सिंहासन में तुम, बैठे छत्र लगाये।
या खेती में खून पसीना, बहा अन्न उपजाए।
सेवा का सूरज तेरे ही, नाम से सदा उदय हो।।
वह समाज जिसका हर भाई, भेदभाव से दूर रहे।
जिस समाज की ललनाओं में, मर्यादा भरपूर रहे।।
जहाँ न भेद कपट हो मन में, और न कोई गम हो।
जय हो, जय हो, जय हो.
रचयिता :- डॉ. ध्रुव कुमार वर्मा
(पूर्व केन्द्रीय अध्यक्ष )
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